प्रकृति अपने ढंग से हमें ये बताती है कि पतझड़ आ गया है। ऐसा असंभव है कि आप अपनी कार के शीशे पे पङी उन लाल-पीली पत्तियों को अनदेखा कर दें जो पिछली रात की हल्की, रिमझिम बरसात के कारण नीचे आ गिरी हैं। कितनी सुंदर हैं वो ढेर सारी रंग-बिरंगी पत्तियाँ जो मस्त हवा के मादक संगीत में मदहोश होकर नृत्य कर रहीं हैं। कुछ पेड़ पीली और लाल पत्तियों से भरे हैं, कुछ में पीली और हरी पत्तियाँ हैं, और कुछ अभी भी पूरी तरह से हरे हैं। इस गुलाबी ठंड में मृदुल हवा का स्पर्श आपको मतवाला कर देने के लिये पर्याप्त है। किसका मन इस सब का आनन्द उठाने को नहीं मचलेगा? कौन टहलने के लिये नहीं जाना चाहेगा ताकि सूखी पत्तियों पर चलने से होने वाली चुर्र-मुर्र की आवाज को सुन सके? कौन कहता है कि ये पत्तियाँ निर्जीव हैं? इन पत्तियों का रंग, ध्वनि और उपस्थिति इस परिवेश को मायने देते हैं। अगर पत्तियाँ निर्जीव हैं तो फिर परिवेश इतना जीवंत कैसे है? क्या इन तथाकथित मृत पत्तियों के बिना भी ये परिवेश इतना ही जीवंत रहेगा?
प्रकृति के नियम अनोखे हैं। अंत में भी आनन्द है! मृत पत्तियाँ भी जीवंत हैं! मैं इस जीवन को अपनी सांसों में भर लेना चाहता हूँ -- वह जीवन जो मृत्यु भी मुझसे छीन न सके!
४ अक्टूबर २००२
Chicago, IL, USA
[उत्तर-पूर्वी एवं मध्य-पश्चिमी अमेरिका के पतझड़ का अनुभव अनोखा है.]