क्यों प्रणय के गीत गाऊँ?
नयन स्वप्निल, देह पुलकित,
ह्रदय प्रीति रस में मुदित।
पर चेतना का विद्रोह-विद्रुम,
क्या करूँ? कैसे दबाऊँ?
क्यों प्रणय के गीत गाऊँ?
स्नेह की थी तृषा मन में,
भटकता रहा मैं जतन में।
मधु-स्रोत पाकर सोचता हूँ,
आत्माग्नि क्यों बुझाऊँ?
क्यों प्रणय के गीत गाऊँ?
मिलन में यह भीति कैसी?
विरक्त यह अनुरीति कैसी?
ज्योत्सना के बंधनों में
मुक्ति-स्वर कैसे छिपाऊँ?
क्यों प्रणय के गीत गाऊँ?
क्या मिटी जग से उदासी?
अब नहीं ये धरा प्यासी?
सुख-श्रांति को संताप देकर
सो रहूँ? चुप डूब जाऊँ?
क्यों प्रणय के गीत गाऊँ?
अंध तम, अभिशाप कितने!
कलुष मन के पाप कितने!
समर्पित कर प्राण अपने,
लघु दीप मैं क्यों न जलाऊँ?
क्यों प्रणय के गीत गाऊँ?
३० जनवरी २००३
Chicago, IL, USA