मेघों पर सूरज उगते ही,
धूप धरा पर उतरी।
रंग-रूप से सजी मही भी,
राह रात से तकती।
मृदुल, मुदित, चंचल, पुलकाता
मंद-मंद है समीरण।
झूम रहे हैं भाव हृदय में,
पात, पुष्प, औ' तरु, तृण।
सुनो सखे! खग-कुल का कलरव!
आजादी का उत्सव! ॥१॥
प्रात प्रथम यह कार्य सदा
तिरंगा प्यारा फहरा कर,
राष्ट्र गान को मुक्त कंठ से
सम्मिलित स्वर में गाकर,
प्रधानमंत्री जी का भाषण
लाल किले से सुनकर,
शुभकामना सब को देकर,
मोदक से मुँह मीठा कर,
मांगूँ "सर्व जन: सुखिनः भव!"
आजादी का उत्सव! ॥२॥
सोच रहा हूँ आजादी पर
जो अंकुर जन्मा था,
कितने जीवन के यत्नों का
वह प्रतिफल नन्हा था।
उन सारे बलिदानी जन ने
कैसा कल सोचा था?
नवजात शिशु के भविष्य का
क्या सपना देखा था?
आया राम-राज क्या राघव?
आजादी का उत्सव! ॥३॥
उस पीढ़ी ने अपना सब कुछ
आजादी पर वारा।
मूल्य चुकाया बंटवारे का,
अश्रु-लहू की धारा।
तिस पर भी विश्राम नहीं था,
कितना कुछ करने को!
स्वाधीन राष्ट्र, पर लक्ष्य शेष,
सुदृढ़ नींव धरने को
ध्रुव-संकल्प लिया था अभिनव!
आजादी का उत्सव! ॥४॥
हमने आजादी को भोगा,
इतना कुछ है पाया।
पर हमने क्या दिया देश को,
कुछ कर्तव्य निभाया?
इतिहास हमें भी तोलेगा,
मूल्यांकन होगा कल।
भविष्य किया है निर्मित या फिर
स्वार्थ जिया है केवल,
हमको हो दायित्व का अनुभव!
आजादी का उत्सव! ॥५॥
१५ अगस्त २०१६
(७०वाँ स्वतंत्रता दिवस)
बंगलौर