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सजल करुण नभ की गोदी में खूब खेल कर आया हूँ।
घने मेघ में चमकी द्युतिकिरण, रोशनी को मुट्ठी में भर लाया हूँ॥
आज प्रभाप्रकाश, दीप्ति, सूर्य की एक पत्नी भी देख रही थी मुझको कुछ कौतूहलcuriosity से
कि निशितानिशा, रात के सम्मोहन को बींधा मैंने किस बल से!
कुछ तो है मुझमें जिसको मैंने भी न पहचाना था,
जिसका संबल आपद्कष्ट और संकट की स्थिति में ही मेरे भीतर आना था।
डूब रहा था कल तक जिस विकराल प्रलय के विप्लवपानी की बाढ़ में,
आज उसी को भर लाया हूँ अपनी बाणों के रवआवाज, शब्द में।
व्यथा-कलश को दे मारा है नीरदनीर देनेवाला, बादल, मेघ के मुख मंडल पर,
उससे ही बिजली चमकी, पानी बरसा भूमंडल पर।
इंद्रधनुषrainbow को बदरीबदली, बदरा, बादल की बूंदों से धोकर आया हूँ।
घने मेघ में चमकी द्युति को मुट्ठी में भर लाया हूँ॥१॥
सुख के क्षण में आशा का गुणगान तो कोई भी कर ले।
बरस रही हो खुशी जहाँ अंजुलि में कोई भी भर ले।
पर पीड़ा के तल-हीनजिसका तल न हो रसातलपुराणानुसार पृथ्वी के नीचेवाले सात लोकों में से छठा लोक में भी बैठा होकर जो
उम्मीदों की डोरी को निश्चय से हर पल बुनता हो,
फिर डोरी को फेंक गगन में, बादल के सर चढ़ जाए,
और कहे कि कहो दिवाकरसूर्य तुम क्यों न अब तक आए?
उसने ही जीता है सच में अंतस के अंधियारे को,
वह सच्चा आशावादी है, समझा है उजियारे को।
उस डोरी से चढ़ा प्रत्यंचाधनुष की डोरी जिसकी सहायता से बाण छोड़ा जाता है इंद्रधनुष की आया हूँ।
घने मेघ में चमकी द्युति को मुट्ठी में भर लाया हूँ॥२॥
२५ सितंबर २०१६
बंगलौर