मुश्किल है अपना मेल प्रिये

डॉ. सुनील जोगी जी की एक प्रसिद्ध हास्य कविता है: मुश्किल है अपना मेल प्रिये। बहुत सारे लोगों ने समय-समय पर इसकी मस्ती पर हाथ आजमाया है। उसी तरंग में बहककर यह मेरा प्रयास है।

मुश्किल है अपना मेल प्रिये।
ये प्यार नहीं है खेल प्रिये॥

तुम क्रिस्टल-मधुकलश प्रिये,
मैं बिन पेंदी का लोटा हूँ।
तुम सोने की चमचम गिन्नी,
मैं जर्जर सिक्का खोटा हूँ।

तुम चांदी का सुधा-चषक,
मैं अनगढ़ माटी कुल्हड़ हूँ।
तुम समाधि की नीरवता,
मैं होली-मस्ती, हुल्लड़ हूँ।

तुम पाँच-सितारा व्यंजन हो,
मैं चौपाटी की भेल प्रिये।
मुश्किल है अपना मेल प्रिये,
ये प्यार नहीं है खेल प्रिये॥

तुम मोहिनी-कर में अमृत सी,
मैं शंकर-कंठ में हलाहल।
तुम बसंत-बयार सुहानी हो,
मैं लू-लपटों का तपता बल।

तुम बेला की सुरभित वेणी,
मैं रुद्र-गले का नाग प्रिये।
तुम चन्दन तिलक सुवासित हो,
मैं गोरखनाथ की राख प्रिये।

तुम गोमुख में निर्जन पूजन हो,
मैं कुम्भ की रेलमपेल प्रिये।
मुश्किल है अपना मेल प्रिये,
ये प्यार नहीं है खेल प्रिये॥

तुम खिले कमल का सम्मोहन,
मैं पंचर पहिये का काँटा हूँ।
तुम मधुर विजय का चुम्बन हो,
मैं निठुर हार का चाँटा हूँ।

तुम लुट्येन-दिल्ली-कॉकटेल,
मैं ठंडाई की भांग प्रिये।
तुम गरिमा स्वच्छ प्रशासन की,
मैं हूँ झाड़ू का स्वांग प्रिये।

तुम हर दल में दल-बदलू सी,
मुझपर है व्हिप की नकेल प्रिये।
मुश्किल है अपना मेल प्रिये,
ये प्यार नहीं है खेल प्रिये॥

२३ मार्च २०१७
बैंगलोर