होती है मन में चाह कभी कि रोज नया कुछ रच देता!
पर गीत नहीं बनते यों ही
कुछ शब्दों के जुड़ जाने से।
गति-यति छंदों में बंधी हुई,
कुछ तुकबंदी मिल जाने से।
रस-रत्नों को यत्नों से चुन
आभूषण में चिपकाने से।
अलंकार के चमत्कार का
कौशल अद्भुत दिखलाने से।
यदि चतुर शिल्प से गढ़ सकता तो रोज नया कुछ गढ़ देता!
होती है मन में चाह कभी कि रोज नया कुछ रच देता!
कविता नहीं लिखी जाती है
स्याही में कलम डुबाने से,
या इंद्रधनुष से ऋण लेकर
स्याही में रंग मिलाने से।
कविता की स्याही बनती है
आँसू से, खून-पसीने से।
कविता पन्नों पर आती है
जीवन में कविता जीने से।
यदि स्याही भर से लिख सकता तो रोज नया कुछ लिख देता!
होती है मन में चाह कभी कि रोज नया कुछ रच देता!
१६ नवम्बर २०१७
बंगलौर