अपने वजूद की पैरवी न तू कर सब से
फकत होने की सजा है मुकर्रर रब से
मौत पे न बस किसी का, पर तू जी ऐसे
तकदीर भी झुक कर करे सलाम अदब से
कई शिकवे किये स्याह रातों ने मुझसे
दिन में दिखने लगे हैं मुझे ख्वाब जब से
नज़रों का बे-हर्फ़ पैगाम ही था काफी
खुद्दारी ने कुछ भी न किया बयाँ लब से
महकती शाम बांहों में झूमी सहर तक
बसी है सांसों में खुशबू-ए-हिना तब से
"बेसबब" इक तू ही नहीं तन्हां दुनिया में
तकता हूँ दिल में मैं तेरी राह कब से
१२ दिसंबर २०१४
बंगलौर