विच्छेद

घनीभूतजो गाढ़ा होकर या जमकर घना हो गया हो पीड़ा में सिमटा, मन सुनसान, ठगा रहता था,
पर सहमी विगलितजो गल गया हो, पिघला हुआ आशा में, फिर भी स्वप्न जगा रहता था।

आकस्मिकअचानक ठोकर कुछ ऐसी,
मानस कुछ भी समझ न पाता।
मन-धागे गांठों में उलझे,
सुलझे शब्द कहाँ से लाता?
बुद्धि से कई तर्क बनाता,
कितने ही औचित्यउचित होने का तर्क (justification) दिखाता,
पर मेधाबुद्धि, अकल, समझ के न चले बहाने,
मन जैसे सबका सच जाने!
सोजो के साथ आने वाला संबंध-सूचक शब्द, इसलिए, अतः, हार घटित हुए सत्य से,
निष्कासितनिकाला हुआ, expelled कर दिया हृदय से।
अब कभी-कभी यादों में रंग,
दबे पाँव, चुप, जाता हूँ संग,
मन के उन खाली कोनों में,
जिनमें कोई सगा रहता था।
घनीभूत पीड़ा में सिमटा, मन सुनसान, ठगा रहता था,
पर सहमी विगलित आशा में, फिर भी स्वप्न जगा रहता था ॥१॥

निष्कासित जो किया हृदय से,
खुद भी निर्वासितनिकाला हुआ, exiled हो आया,
जग की वीथीदीर्घा, Gallery का रवध्वनि, आवाज, noise तजतजना: त्यागना, छोड़ना कर,
अंतस-वन में मौन समाया।
भावों का मृग भाग रहा था,
परिधिवृत्त की रेखा (circumference), किसी वस्तु के चारों ओर खिंची हुआ वास्तविक या कल्पित घेरा प्रश्नों से नाप रहा था।
नेह मिला था, नेह दिया था,
या केवल भ्रम पाल लिया था?
तब प्रश्नों में राह नहीं थी,
और विषाददुःख की थाहगहराई नहीं थी।
अब विरागराग न होना, विरक्ति, dispassion; न आह बची है,
बस उन कोनों में याद सजी है –
राख की परतों से लड़ने में,
नित चिंगार लगा रहता था।
घनीभूत पीड़ा में सिमटा, मन सुनसान, ठगा रहता था,
पर सहमी विगलित आशा में, फिर भी स्वप्न जगा रहता था ॥२॥

१३ दिसंबर २०१५
बंगलौर