गत वर्ष हेतु, अभिलाषा से जीवन-थाल सजाया था,
आँख बिछायीं थीं पथ पर, आशा का दीप जलाया था,
बन पाहुन आ जीवन में कुछ सुख-दुख नूतन डाल गया,
चंद नयी स्मृतियाँ बुन कर पीछे यह भी साल गया।
पाहुन था, आकर चला गया; नियम सदा यह नियत रहा,
पुनः नहीं मिलना होगा, सर्वदा यह भी विदित रहा।
विदा विगत को दो लेकिन आशा-दीप जलाये रखना,
आगंतुक नव वर्ष हेतु जीवन-थाल सजाये रखना ॥१॥
नव पाहुन के स्वागत में फिर नये प्रण निर्मित होंगें,
कुछ दिन पालन होगा फिर जीवन में दब विस्मृत होंगे।
माह अंत आते-आते नव वर्ष पुराना हो जायेगा,
जीवन फिर वही पुरानी नित दिनचर्या दोहरायेगा।
पर नूतन के आकर्षण में कैसे न नवल प्रयास करूँ,
इस बार मेरा मन कि हर क्षण जीने का अभ्यास करूँ।
उन्नति में चिर रत रहने का मनु-स्वाभाव बनाये रखना,
आगंतुक नव वर्ष हेतु जीवन-थाल सजाये रखना ॥२॥
३१ दिसंबर २०१४
बंगलौर