रसना में नहि रस रहा, रसिक से रूठा रास।
माया जोड़ी जतन से, अब मुक्ती की आस॥
मरघट की माया मुरी, मुरदा दे उपदेश।
जी भर जीना सीख ले, कफन में कुछ न शेष॥
४ दिसंबर २०१५
बंगलौर
Satish Chandra Gupta
रसना में नहि रस रहा, रसिक से रूठा रास।
माया जोड़ी जतन से, अब मुक्ती की आस॥
मरघट की माया मुरी, मुरदा दे उपदेश।
जी भर जीना सीख ले, कफन में कुछ न शेष॥
४ दिसंबर २०१५
बंगलौर