नयी सुबह की जब कोई उम्मीद लाता है

हमारे योगेंद्र यादव जी के स्वराज अभियान के सक्रिय राजनीति में आने के ऐलान से मेरी ये ग़ज़ल जन्मी है। बाबा भारती के घोड़े की कहानी हार की जीत याद आती है। वक़्त अगर मेरी ये नकारात्मक सोच गलत साबित करता है, तो मुझसे ज्यादा ख़ुशी किसी को भी नहीं होगी।

नयी सुबह की जब कोई उम्मीद लाता है
भरोसा टूटने का तजरबाअनुभव, experiences याद आता है

इरादा वही तेरा कि जो तू कह रहा सब से
पर तख़्तराज-गद्दी, throne पर ईमान थोड़ा डगमगाता है

किसी नीयत पर शुबहशक, संदेह, doubts मकसद नहीं मेरा
बस पुराना ज़ख़्म कोई उभर आता है

ज़ुबानी सुन चुका हूँ कई बार ये दास्ताँ
खुद को माज़ीअतीत, past बार-बार दोहराता है

जुनून-ए-इंकलाब न हो "बेसबब" तेरा
यही सोच के हर बार दिल बहल जाता है

३ अगस्त २०१६
बंगलौर

PS:
रदीफ़/पदांत: है
क़ाफ़िया/समांत: ...आता
बहर/मापनी: ये ग़ज़ल बे-बहर है, लेकिन कई मिसरे तवील बहर (१२२ १२२२ १२२ १२२२, फ़ऊलुन मुफ़ाईलुन x २) में हैं।