रू-ब-रू न हो सके तो न सही

रू-ब-रूआमने-सामने न हो सके तो न सही
जो बात कहनी थी वो कही

दूरियाँ न होतीं कभी मुद्दईअभियोगी, वादी
जुर्म है जमाना मुँह में दही

गुल गुलिस्तां के कहीं भी रहें
खुशबू हवा में दूर तक बही

हँसना-हँसाना सलामत रहे
दुनिया इसी से सलामत रही

‘बेसबब’ इधर भी तशरीफ़ध्यान, सराहना हो
हुज़ूर से बस इल्तिजाअनुरोध है यही

२४ मई २०१७
बंगलौर