हिंदी
- 2019
- 2018
- 2017
- विवाह - व्याकरण
- रोज नया कुछ रच देता
- सड़कों को बहते देखा है
- लेखनी कहती है मुझसे कि लिखो तुम
- गांधारी का शाप
- राम राज्य
- बदनाम होकर भी मियाँ
- देहरी
- जो छिपाना चाहता था
- मणिकर्णिका, मनु, छबीली - झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई
- कामायनी - चिंता सर्ग
- रू-ब-रू न हो सके तो न सही
- कहावत-मुहावरे - प्रथम कड़ी - गेहूँ के साथ घुन पिसना
- संत-सरिता - प्रथम कड़ी - चलती चक्की देख के
- देख ले ऊषा तिमिर को बेध कर है मुस्कराती
- मुश्किल है अपना मेल प्रिये
- उत्तर प्रदेश २०१७ विधान सभा चुनाव - कुण्डलिया
- दूत अलि ऋतुपति के आये - निराला
- 2016
- क्या गाऊँ - डॉ. रामकुमार वर्मा
- आत्मनिरीक्षण
- जल-प्लावन फिर से होगा!
- विमुद्रीकरण - कुण्डलिया
- साँझ ढ़ले मधुबन आऊँगा
- जा रहा हूँ मैं नहाने!
- अग्निपरीक्षा बाकी है
- मैं ऐसा ही हूँ!
- दीपक की लौ का स्पंदन!
- शरद पूर्णिमा
- बरसती बरखा सुहानी!
- पुण्य संजो कई जन्मों का
- भारत का धीरज - कुण्डलिया
- रघुवीर अवध अब लौट चलो
- रौशनाई से काग़ज़ काला कर रहे हैं
- घने मेघ में चमकी द्युति को
- कह-मुकरियाँ
- हमको अब तक I.I.T. का वो ज़माना याद है
- लेखनी तुम न हो उदास
- तनये! तुम मेरे जीवन की थाती हो!
- आजादी का उत्सव
- जब भी कभी फ़लक पर
- नयी सुबह की जब कोई उम्मीद लाता है
- मोदी-ग्रस्त केजरीवाल
- बरसना था मगर
- तेरी ख़ुशी में शरीक था
- आओ मिल कर गधा बनाएँ
- हमें भी ग़ज़ल आ जाए
- आशुतोष की IBM में बीसवीं सालगिरह पर
- कानपुर का राष्ट्रगीत
- तमन्ना हर किसी की है
- हुज़ूर आज फिर मचल रहा हूँ
- मैं उँगली थामे चलता हूँ - हास्यानुकृति
- आभार - शिवमंगल सिंह सुमन
- क्यों करूँ यह कविता पूरी
- कुंठ सर्ग - भाग ५ - शुभ बड़ी अनुकूल वेला
- कुंठ सर्ग - भाग ४ - सत्य? रण है द्वार आया?
- कुंठ सर्ग - भाग ३ - यदि समय अनुकूल होता
- कुंठ सर्ग - भाग २ - रात बीती, पर न बीती
- कुंठ सर्ग - भाग १ - यामिनी मुझको सुला दे
- सखि वे मुझसे कह कर जाते - हास्यानुकृति
- पंछी
- मधुर प्रतीक्षा ही जब इतनी, प्रिय, तुम आते तब क्या होता?
- होली दोहे २०१६
- प्रांजल
- शीत की यह रात दुष्कर!
- लोप सर्ग - भाग १ - वंदना
- 2015
- विच्छेद
- माया - दोहे
- ये गलियाँ बड़ी वीरान दिखती हैं
- बीन आ छेड़ूँ तुझे... - हरिवंशराय बच्चन
- क्या भूलूँ क्या याद करूँ - हरिवंशराय बच्चन
- क्यों नया मैं गीत गाऊँ?
- कुपित हुई भारती है
- जरण
- स्नेह का आभार तुमको, हे प्रिये!
- विभ्रांति
- लोक-अवज्ञा
- तरुवर के तीन बीज
- सुख में क्या चाहूँ
- हाइकु - प्रकाश रश्मि किरण
- हाइकु - आशा आस उम्मीद
- 2014
- नव वर्ष का स्वागत
- हम बिक गये
- अपने वजूद की पैरवी न तू कर सब से
- धीरे-धीरे जाग रहा हूँ
- बचपन से पुनः मिलन
- नजरें कुछ तो बोल रही हैं
- जीवन का फिर द्यूत सजाया
- ऐसे ही जीवन चलता है
- उत्तर प्रदेश २०१४ चुनाव परिणाम - कुण्डलिया
- आसन्न अवसान
- साँवरिया - कुण्डलिया
- सागर - कुण्डलिया
- मर्त्य जगत
- तेरा मलिन ललाट क्यों - कुण्डलिया
- पहला कुण्डलिया
- मेरे गुनाहों का मुझसे हिसाब न मांगो
- होली दोहे २०१४
- पूंछूं कि मेरे रक़ीब का मिज़ाज कैसा है
- सजदे में सर न झुका
- मैं तो खुली किताब हूँ
- निश्चय की परीक्षा
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